Thursday 21 November 2019

उड़ान

जब हौसला बना लिया ऊँची उड़ान का,
फिर देखना फिज़ूल है कद आसमान का।
पंख नही तो गम नही इस अज़ाब का,
हौसले से संभव है सफर आसमान का।
तेज आँधी आयेंगी राहों में तेरी,
सफर मत छोड़ना तू इस जहान का।
इस हाल में मरने की दुआ न करना,
तब तक उड़ना है तुझे,
जब तक उड़ न ले तू कोना कोना आसमान का।
जिस हाल में तू उड़ रहा है उड़ता जा,
एक दिन तेरा कद वहाँ होगा,
जहाँ आखिरी छोर है आसमान का।
तब सारा जहान तेरे कदमों में होगा,
तब तू पंख के बिना भी उड़ान भर रहा होगा।

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- ब्रिजेश विश्वकर्मा

Tuesday 13 November 2018

गम्भीर मजाक

Written By-
Brijesh Vishwakarma

"हिन्दी भारत की राष्ट्रभाषा है?"



JOKE छोटा है,
पर अच्छा है ना ?

Friday 5 October 2018

अहसास

Written By
Brijesh Vishwakarma

वो मेरे छूने पर,
तेरी सोती हुई बंद पलकों का खुल जाना।
वो मेरे छूने पर,
तेरे गुलाबी ओंठो का शर्माकर लाल सुर्ख हो जाना।
मुझे देखते ही,
तेरे सांवले गालों पर गड्ढों का पड़ जाना।
मेरे करीब आते ही,
तेरी भीगी उलझी जुल्फो का सुलझ जाना।
मुझे देखने को,
वो तेरा सकुचाकर लजाती नजरें उठाना।
मुझे पाने को,
वो तेरा मन्नतें पूरी करते जाना।
याद है सब मुझे.....
अब तो बस इतना ही कहूँगा,
जब देखा तुझे तो,
प्यार की खूबसूरती को जाना।

Tuesday 25 September 2018

अर्जुन की दास्तान


Written By :
Brijesh Vishwakarma
सब कह रहें हैं देश डिजिटल बन रहा है,
देश प्रगति कर रहा है।
पर अर्जुन तो आज भी पूरा दिन,
सिलाई करके अपना पेट भर रहा है।
होगा देश सबसे बलवान,
होगा देश सबसे धनवान।
पर इन दयनीय स्थिति को देखते हुए,
प्रश्न चिन्ह लगता है इस वाक्य पर-
"भारत देश है सबसे महान"।
लोग मंगल पर आशियाने बनाने की ताक में हैं,
पर अर्जुन से पूछो जो आज भी,
एक छोटा सा घरौंदा बनाने की आश में है।
हमारे देश में बुलेट ट्रेन आनी है,
पर अर्जुन की जिंदगी तो ग्यारह नंबर बस से ही गुजर जानी है।
अर्जुन गरीब है,
लोगों को दिखता भी है।
उसका दर्द,
इस देश में बिकता भी है।
वो गरीब तो है साहिब,
पर उसके पास कोई कागजी सबूत नहीं,
अपनी गरीबी का।
गरीबी का प्रमाण लेने जब वो जाता है,
तब सरकारी अफसर उसे गोल गोल घुमाता है।
जो अर्जुन दिन रात कपडे सिल कर भी,
अपने परिवार की जरूरत पूर्ण करने में असमर्थ रह जाता है।
इतनी मोटी तनख्वाह खाने के बाद भी यह अफसर,
उस गरीब से क्यों पैसे कमाता है।
क्या करें अर्जुन कहाँ से लायेगा,
अब घूस देने को पैसे।
इससे बेहतर अर्जुन भला,
और उसकी सिलाई मशीन भली।
एक बात और कहूँगा,
यह मत सोचना अर्जुन कमजोर है।
अर्जुन की बाजुओं में,
आपसे ज्यादा जोर है।
उसके लिए तो,
सरकार की सारी योजनायें बेकार है।
क्यों कि उसके जीवन का,
वो स्वयं आधार है।
ऐसा नहीं है अर्जुन तरक्की नहीं कर रहा है,
पर उसकी आमदनी से चौगुनी रफ्तार से,
खर्चा बढ़ रहा है,
महंगाई बढ़ रही है।
उसकी जिंदगी जहाँ थी,
आज भी वहीं है।
दुनिया चाँद सितारों पर जाकर बस जाएगी,
पर उसकी तरफ किसी की नजर नहीं जाएगी।
हमारे देश में एक अर्जुन भी बाकी है जब तक,
तब तक मत कह देना देश तरक्की कर रहा है।

Sunday 19 August 2018

शिक्षा का बाजार

Written By :
Brijesh Vishwakarma

आज का समय बहुत विचित्र है,
हमें अपने ही भविष्य के विषय में तनिक भी चिंता नही क्यों कि देश का भविष्य आगामी पीढ़ी की शिक्षा से पूर्ण रूप से संबंध रखता है। पिछले कईं दशकों से हमारी सरकारें शिक्षा स्तर में सुधार लाने के लिये प्रयासरत हैं।
लेकिन परिणाम नगण्य ही है।
मैं अदना सा लेखक अपने अंतर्हृदय में उठने वाले विचारों को लेख के माध्यम से आप तक पहुँचाना चाहता हूँ, ताकि हमारे देश की विकास रूपी धारा उज्जवल भविष्य की और प्रवाहित हो सके। क्यों कि हमारे देश का संपूर्ण भविष्य यह छात्र, छात्रायें और देश की नई युवा पीढ़ी ही तो हैं।
"सच कड़वा है पर सच यह है कि व्यापार के इस दौर मे, शिक्षा भी आज बिकने लगी है।"
सबसे ज्यादा महँगाई तो शिक्षा के बाजार में बढ़ी है।
पहले जहाँ विद्यालय को शिक्षा का मंदिर माना जाता था और आज..........?
आज अभिभावक अपने बच्चों को शासकीय विद्यालय में प्रवेश दिलाना उचित नहीं समझते क्यों कि सरकारी परिसर का वातावरण इस प्रकार का हो गया है कि आधुनिक शिक्षा पाना पूर्ण रूप से संभव नहीं रह गया है। सरकारी शिक्षकों की ड्यूटी तो पोषाहार के रजिस्टर पूर्ण करने में ही समाप्त हो जाती है, या तो फिर शिक्षकों के अंदर पढ़ाने का उत्साह कम है शायद इसलिए शासकीय शिक्षकों के बच्चे भी निजी विद्यालयों में पढ़ते हैं। कुछ शिक्षक जनगणना और मतदान में उलझे पड़े हुए हैं। शासकीय शिक्षक तो केवल सेवक बनकर रह गए हैं। प्रायः यह भी देखने को मिलता है कि शिक्षकों को खुद ही पूर्ण ज्ञान का अभाव होता है, यह ही तो भ्रष्टाचार का परिणाम है।
शासकीय विद्यालयों की कमजोरी का फायदा उठाकर निजी विद्यालय शिक्षा के नाम पर मनमानी फीस वसूलते हैं। निजी संस्थानों में इतनी बड़ी रकम फीस के रूप में वसूली जाती है। आजकल विद्यार्थियों को अपने कक्षा मे बैठने से ज्यादा जरूरी कोचिंग मे बैठना लगता है। नोट्स बनाने के चक्कर मे वो पूरी किताब को पढ़ते ही नहीं है। अगर वे नोट्स के बदले, अपनी किताबों को ही अच्छे से पढ़ें, तो वो उनके परीक्षाओं मे काफी अच्छा प्रदर्शन कर सकते है और पूरा ज्ञान अर्जित कर सकते हैं। लेकिन फिर भी, यहाँ एक और सवाल पैदा होता है कि आखिर विद्यार्थी निजी विद्यालयों में पढ़ते हुए भी क्यों कोचिंग की तरफ आकर्षित हो रहे है?
क्या इसका कारण सिर्फ ज्यादा अंको की लालसा है?
या फिर,इसके पीछे है कोई और वजह?
इतनी फीस भरने के बाद भी क्यों बच्चों को कोचिंग का सहारा लेना पड़ता है मैं अभिभावकों से पूछना चाहता हूँ कि...
क्यों बच्चों को कोचिंग का दरवाजा खटखटाना पड़ता है?
कौन हैं यह कोचिंग वाले?
क्या आज के अभिभावक शिक्षित नहीं हैं?
अभिभावक के शिक्षित होने पर भी बच्चे कोचिंग क्यों जाते हैं?
सबसे अहम् सवाल
क्यों ऐसे बच्चे भी कोचिंग जाते हैं जिनके अभिभावक शिक्षक हैं?
क्या अभिभावक अपने 1st Standard के बच्चे को भी नहीं पढ़ा सकते?
क्या शिक्षा का स्तर इतना कठिन हो गया है?
क्यों शिक्षक बच्चों को स्कूल में नहीं पढ़ा सकते?
क्या यह कोचिंग क्लास सरकारी और निजी विद्यालयों के शिक्षण पर प्रश्न चिन्ह नहीं लगा रहें हैं?

यह कोचिंग वाले वही शिक्षक हैं जो शासकीय और निजी विद्यालयों में आपके बच्चों को पढ़ाते हैं।
क्या विद्यालय में बच्चों को पढ़ाने का समय 5 घंटे काफी नहीं है? जो बच्चों को कोचिंग में आमंत्रण दिया जाता है।
जिस ग्यान के अधिकारी ये विद्यार्थी है, वही ग्यान उन्हें पैसो से खरीदना पड़ रहा है। लेकिन इस धंधे मे सबसे ज्यादा अगर किसी का फायदा है, तो वो है शासकीय और निजी शिक्षकों द्वारा संचालित किये जा रहे कोचिंग का। गुजरे कुछ वर्षों से चला आ रहा इस काले धंधे के विरोध के तहत, कई विद्यार्थियों का भविष्य नष्ट हो चुका है। अब ये हमे तय करना है,की क्या ये भ्रष्टाचार ऐसे ही चलता रहेगा, या अपना ईमान अब कुछ कहेगा।
समस्त अभिभावकों से अनुरोध है कि आप एकाग्रता से अपने इर्द-गिर्द देखिये अधिकतकर विभागों में बढ़े अधिकारी, सभी लगभग शासकीय स्कूल से ही शिक्षा प्राप्त कर उस उच्च पद पर विराजमान है। जो कि प्राथमिक शिक्षा के स्तर की अनोखी मिशाल है। आप ही हैं जो इन निजी संस्थानों और कोचिंग की मनमानी पर रोक लगा सकते हैं।
जब शिक्षा विभाग के कर्मचारी, शिक्षक और अधिकारी ही अपने बच्चों के भविष्य इन निजी विद्यालयों और कोचिंग वालो के हाथों में सौंप देंगे तो कैसे सरकारी विद्यालयों का वर्चस्व वापस लौटकर आयेगा और कब शिक्षा के बाजार पर पूर्णविराम लगेगा।

Tuesday 7 August 2018

माँ तुझको अब में ढूंढ ना पाया

Written By :
Brijesh Vishwakarma

विविध धुनों में कितना गाया,
हर धुन में माँ तुझको पाया।
लोरी गा तूने मुझे सुलाया,
रात में जब माँ चंदा आया।
भूख ने जब माँ मुझे सताया,
तूने अमृतपान कराया।
उंगली पकड़ जब चलना सिखाया,
दौड़ के माँ तुझे गले लगाया।
जब भी माँ मैने ठोकर खाया,
थाम हाथ तूने मुझे उठाया।
मेरी हर गलती को छुपाया,
हर पल तुझको पास है पाया।
दुनिया ने मुझको ठुकराया,
माँ ने मुझको गले लगाया।
लुका छुपी का खेल सिखाया,
हर पल माँ तुझे मैने पाया।
कुदरत ने ऐसा खेल खिलाया,
माँ तुझको अब में ढूंढ ना पाया।
इस लुका छुपी में तूने मुझे हराया,
माँ तुझको अब में ढूंढ ना पाया।
माँ तुझको अब में ढूंढ ना पाया।

Wednesday 25 July 2018

तू बहुत याद आती है

Written By :
Brijesh Vishwakarma

आसमां में जैसे रहता है चाँद,
वैसे ही मेरे दिल में तू रहती है।
किसी से कुछ कहें ना कहें,
पर तेरी आँखे मुझसे सबकुछ कहती हैं।
तू जो संग होती है मेरे,
तो सारा जहाँ संग होता है।
रोशन होती हैं सभी दिशायें जैसे तुझसे ऐ पूनम के चाँद,
इस नाचीज की दुनिया भी तुझसे वैसे ही रोशन होती है।
तू हंसती है जब,
तो लगता है जैसे चाँद खिलता हो।
तू मुझसे रूठती है,
जैसे आसमां में चाँद छुपता है।
जब मैं तुझे मनाता हूँ,
तू नजाकत से नजरें झुकाती है।
तू लजाती है, शर्माती है,
मेरे आगोश में फिर तू आ जाती है।
आकाश में चाँद जब रोशन होता है,
तू बहुत याद आती है।
तू बहुत याद आती है।

उड़ान

जब हौसला बना लिया ऊँची उड़ान का, फिर देखना फिज़ूल है कद आसमान का। पंख नही तो गम नही इस अज़ाब का, हौसले से संभव है सफर आसमान का। तेज आँधी आय...